उपासना स्कूल नारनौंद में छात्र दिनेश का निष्कासन विवाद: परिजन बोले 'बर्बाद हुआ साल', स्कूल प्रशासन ने दी सफाई
नारनौंद (हिसार), 27 अप्रैल 2025।
उपासना सीनियर सेकेंडरी स्कूल, नारनौंद में पढ़ रहे एक छात्र दिनेश के निष्कासन को लेकर विवाद गहरा गया है। आरोप है कि स्कूल प्रशासन ने परीक्षा में पेपर न देने के आधार पर छात्र को पढ़ाई से बाहर कर दिया, जिससे उसका पूरा एक साल बर्बाद हो गया। वहीं स्कूल प्रशासन ने इन आरोपों का खंडन करते हुए स्पष्ट किया है कि दिनेश को नियमानुसार ही विद्यालय से निकाला गया और इस संबंध में बीईओ कार्यालय में भी जवाब प्रस्तुत किया जा चुका है।
क्या है पूरा मामला?
दिनेश, जो उपासना स्कूल में (12वीं कक्षा) का छात्र था, उसे स्कूल से मई माह में निष्कासित कर दिया गया। परिवार का आरोप है कि विद्यालय ने बिना कोई अंतिम अवसर दिए, उसे स्कूल से बाहर का रास्ता दिखा दिया। परिजनों का कहना है कि दिनेश ने प्लस टू कक्षा में दाखिला तो लिया था, लेकिन बीच में व्यक्तिगत कारणों से कुछ परीक्षाओं में हिस्सा नहीं ले पाया। जब उन्होंने स्कूल प्रशासन से अनुरोध किया कि दिनेश को दोबारा अवसर दिया जाए, तो उनकी मांग को नजरअंदाज कर दिया गया और छात्र का नाम काट दिया गया।
परिजनों का आरोप: 'बर्बाद हुआ पूरा साल'
दिनेश के माता-पिता का कहना है कि उनके बेटे का एक पूरा शैक्षणिक सत्र बर्बाद हो गया। उनका आरोप है कि:
- स्कूल ने न तो पहले कोई चेतावनी दी,
- न ही कोई वैकल्पिक व्यवस्था सुझाई,
- और सीधे छात्र को निष्कासित कर दिया गया।
एक नाराज़ पिता ने कहा,
"हमने अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा के लिए इस स्कूल में भेजा था। अगर दिनेश से गलती हुई थी तो उसे सुधार का मौका मिलना चाहिए था, न कि तुरंत स्कूल से निकाल देना चाहिए था। आज उसके एक साल का भविष्य अधर में है।"
स्कूल प्रशासन का पक्ष: 'नियमों के अनुसार कार्यवाही'
विवाद पर प्रतिक्रिया देते हुए उपासना सीनियर सेकेंडरी स्कूल के प्रिंसिपल जगदीश भैरव ने कहा कि दिनेश को कई बार चेतावनी दी गई थी। उन्होंने कहा,
"दिनेश न तो समय पर कक्षाओं में भाग ले रहा था, न ही निर्धारित परीक्षाओं में उपस्थित हो रहा था। बार-बार समझाने के बावजूद भी उसकी उपस्थिति और प्रदर्शन में सुधार नहीं हुआ। इस कारण नियमानुसार उसे स्कूल से हटाना पड़ा।"
प्रिंसिपल ने यह भी बताया कि इस विषय में उन्होंने खंड शिक्षा अधिकारी (BEO) कार्यालय में पूरा विवरण जमा करवा दिया है।
"हमने छात्र के निष्कासन को लेकर सभी प्रक्रियाओं का पालन किया है और BEO ऑफिस को भी पूरी जानकारी दी है। हमारे पास हर कार्रवाई का रिकॉर्ड मौजूद है," प्रिंसिपल ने स्पष्ट किया।
बीईओ कार्यालय की भूमिका
परिवार द्वारा स्कूल प्रशासन के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने के बाद, बीईओ (खंड शिक्षा अधिकारी) कार्यालय ने इस पूरे प्रकरण की रिपोर्ट मांगी थी। स्कूल ने अपना लिखित जवाब प्रस्तुत कर दिया है जिसमें दिनेश की उपस्थिति रिपोर्ट, परीक्षा में भागीदारी की जानकारी और चेतावनी पत्रों की प्रतियां भी शामिल हैं। हालांकि अब तक बीईओ कार्यालय ने इस मामले में कोई अंतिम निर्णय या सार्वजनिक बयान नहीं दिया है। परिजनों ने मांग की है कि निष्पक्ष जांच के बाद न्याय दिया जाए।
विशेषज्ञों की राय: दोनों पक्षों की जिम्मेदारी
शिक्षाविदों का मानना है कि ऐसी परिस्थितियों में दोनों पक्षों को संवेदनशीलता दिखानी चाहिए। एक ओर जहां स्कूल का यह अधिकार है कि वह अनुशासनहीनता के खिलाफ कदम उठाए, वहीं छात्रों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए सुधार के अवसर भी प्रदान किए जाने चाहिए।
एक शिक्षाविद ने नाम न छापने की शर्त पर कहा,
"अगर छात्र को चेतावनी दी गई थी और बावजूद इसके उसने सुधार नहीं किया, तो स्कूल की कार्रवाई उचित है। लेकिन अगर छात्र को सुधार का पर्याप्त अवसर नहीं दिया गया, तो स्कूल प्रशासन को भी अपनी प्रक्रिया की समीक्षा करनी चाहिए।"
क्या कहता है शिक्षा विभाग का नियम?
हरियाणा शिक्षा विभाग के नियमों के अनुसार, किसी भी छात्र को बिना पर्याप्त चेतावनी और परामर्श के निष्कासित नहीं किया जा सकता।
- पहली बार गलती होने पर चेतावनी,
- फिर सुधार का अवसर,
- और उसके बाद ही निष्कासन जैसे कठोर कदम उठाने की अनुमति है।
परिजनों का आरोप है कि दिनेश को न तो लिखित चेतावनी दी गई थी और न ही उसे सुधार का अवसर मिला। वहीं स्कूल प्रशासन का दावा है कि सभी प्रक्रियाओं का पालन किया गया।
सोशल मीडिया पर भी उठी बहस
मामले के तूल पकड़ते ही नारनौंद क्षेत्र के सोशल मीडिया ग्रुप्स और व्हाट्सएप फोरम्स पर भी बहस शुरू हो गई है। कुछ लोगों ने स्कूल प्रशासन के कदम का समर्थन किया, तो कुछ ने इसे 'छात्रों के भविष्य से खिलवाड़' करार दिया।
एक स्थानीय नागरिक ने लिखा,
"छात्रों को अनुशासन में रहना चाहिए, लेकिन स्कूलों को भी इतनी कठोरता नहीं बरतनी चाहिए कि एक बच्चे का पूरा साल बर्बाद हो जाए।"
निष्कर्ष: भविष्य में कैसे रोका जा सकता है ऐसे विवाद?
यह घटना एक बार फिर शिक्षा क्षेत्र में सुधार की आवश्यकता की ओर इशारा करती है।
- स्कूल प्रशासन को पारदर्शिता और संवेदनशीलता के साथ कार्य करना चाहिए।
- छात्रों और अभिभावकों को समय रहते सभी जरूरी सूचनाएं दी जानी चाहिएं।
- शिक्षा विभाग को भी ऐसे मामलों में त्वरित हस्तक्षेप कर न्यायसंगत समाधान निकालना चाहिए।
दिनेश और उसके परिवार के लिए यह एक कठिन समय है। अब देखना यह होगा कि बीईओ कार्यालय इस मामले पर क्या अंतिम निर्णय लेता है — और क्या दिनेश को कोई वैकल्पिक मौका मिल सकेगा ताकि उसका भविष्य सुरक्षित रह सके।
[समाप्त] रिपोर्ट — Today News Update नारनौंद