जम्मू-कश्मीर न जाकर बिहार रैली क्यों?

प्रधानमंत्री मोदी की सऊदी से वापसी और उठते सवाल | Today News Update

प्रधानमंत्री मोदी का सऊदी दौरा छोटा करना, जम्मू-कश्मीर न जाना और बिहार रैली करना — सवालों के घेरे में

नई दिल्ली, 27 अप्रैल 2025।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में सऊदी अरब का अपना महत्वपूर्ण दौरा अचानक छोटा कर भारत वापसी की। इस अचानक फैसले ने पहले तो यह संकेत दिया कि देश में कोई गंभीर संकट पैदा हो गया है, जिससे प्रधानमंत्री को विदेश यात्रा बीच में छोड़नी पड़ी। लेकिन भारत लौटने के बाद घटनाक्रमों ने कई नए सवाल खड़े कर दिए हैं।

आम जनता से लेकर राजनीतिक विश्लेषकों और विपक्षी दलों तक, हर किसी के मन में यह प्रश्न उठ रहा है — प्रधानमंत्री ने वापसी के बाद जम्मू-कश्मीर क्यों नहीं दौरा किया, घायल नागरिकों से क्यों नहीं मिले, मृतकों के परिवारों से क्यों नहीं बातचीत की, और किसी तरह की प्रेस कॉन्फ्रेंस क्यों नहीं की?

इसके बजाय, प्रधानमंत्री ने बिहार में एक चुनावी रैली को संबोधित किया — जिससे विपक्ष ने गंभीर सवाल खड़े किए हैं कि क्या उनकी प्राथमिकता राष्ट्रीय सुरक्षा से अधिक चुनावी राजनीति रही?

जम्मू-कश्मीर में बड़ा आतंकी हमला, फिर भी कोई दौरा नहीं

पिछले सप्ताह जम्मू-कश्मीर के पुलवामा और बारामुला जिलों में आतंकी हमले हुए, जिसमें कई सुरक्षाकर्मियों और आम नागरिकों की जान चली गई। घायलों की हालत गंभीर बनी हुई है और इलाके में तनाव व्याप्त है।

ऐसे समय में जब पूरा देश शोक में डूबा था, प्रधानमंत्री से अपेक्षा थी कि वे संवेदनशीलता दिखाते हुए जम्मू-कश्मीर का दौरा करेंगे, पीड़ितों और शहीद परिवारों से मिलेंगे, और देश को एकजुट करने का संदेश देंगे।

विपक्ष का तीखा हमला

कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष ने सीधे सवाल किया — "प्रधानमंत्री मोदी ने अगर हमले के बाद सऊदी दौरा छोटा किया था, तो क्या उन्हें पीड़ितों से मिलने का नैतिक दायित्व नहीं बनता था?"

समाजवादी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस जैसे अन्य विपक्षी दलों ने भी आरोप लगाया कि मोदी सरकार ने एक बार फिर राष्ट्रीय शोक को राजनीति के नीचे दबा दिया है।

राहुल गांधी ने कहा, "अगर प्रधानमंत्री की प्राथमिकता बिहार में चुनाव प्रचार करना थी, तो फिर आतंकवादी हमले का हवाला देकर विदेश दौरा छोटा करने की क्या जरूरत थी?"

बीजेपी का बचाव

भारतीय जनता पार्टी ने प्रधानमंत्री मोदी का बचाव करते हुए कहा कि उनकी सऊदी से वापसी एक "रणनीतिक कदम" था।

पार्टी नेताओं के अनुसार, प्रधानमंत्री ने दुनिया को यह दिखाने के लिए लौटने का फैसला किया कि भारत आतंकवादी हमलों को अत्यंत गंभीरता से लेता है।

भाजपा प्रवक्ता ने कहा, "प्रधानमंत्री का जम्मू-कश्मीर न जाना कोई असंवेदनशीलता नहीं थी। सरकार सभी आवश्यक कदम उठा रही है। मोदी जी चुनावी कार्यक्रमों के माध्यम से जनता को एकजुट और आश्वस्त कर रहे हैं।"

चुनावी रणनीति बनाम राष्ट्रीय जिम्मेदारी

देश के आम नागरिकों में भी असमंजस और गुस्सा व्याप्त है। कई सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं ने टिप्पणी की कि प्रधानमंत्री को हमले के शिकार लोगों के साथ खड़ा होना चाहिए था।

विशेषज्ञों का मानना है कि संकट के समय में नेताओं का जनता के बीच उपस्थित होना केवल सांकेतिक नहीं होता, बल्कि नैतिक और मनोवैज्ञानिक दृष्टि से भी अत्यंत आवश्यक होता है।

कूटनीतिक विफलता भी?

विदेश नीति के विशेषज्ञों का कहना है कि सऊदी अरब जैसे रणनीतिक साझेदार के दौरे को बीच में छोड़ना भारत के दीर्घकालिक हितों के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है।

एक पूर्व राजदूत ने कहा, "जब आप बिना पूरा एजेंडा पूरा किए विदेश दौरा बीच में छोड़ते हैं, तो यह सहयोगी देशों में असमंजस और विश्वास में कमी पैदा कर सकता है।"

निष्कर्ष: सवाल अनुत्तरित

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सऊदी अरब से लौटने के फैसले ने जितनी उम्मीदें जगाईं थीं, उनके भारत लौटने के बाद की गतिविधियों ने उन उम्मीदों को उतना ही गहरा धक्का दिया है।

जम्मू-कश्मीर के पीड़ितों के साथ सहानुभूति जताने की बजाय बिहार चुनावी रैली को प्राथमिकता देने के फैसले ने प्रधानमंत्री के नेतृत्व और प्राथमिकताओं पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

देश आज भी इन सवालों के जवाब की प्रतीक्षा कर रहा है:

  • अगर आतंकवादी हमले के चलते सऊदी दौरा छोटा किया गया था, तो फिर पीड़ितों से मिलने और जम्मू-कश्मीर का दौरा करने में क्या बाधा थी?
  • राष्ट्रीय संकट के समय प्रधानमंत्री की भूमिका चुनाव प्रचार से ऊपर क्यों नहीं रही?

जब तक इन सवालों का ईमानदार जवाब नहीं दिया जाता, तब तक प्रधानमंत्री मोदी की इस वापसी को देश सिर्फ एक राजनीतिक कदम ही मानता रहेगा — संवेदनशील राष्ट्रीय संकट के दौरान एक चूक का प्रतीक।

रिपोर्ट © Today News Update
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