BIG BREAKING: पंजाब विधानसभा में प्रस्ताव पास, हरियाणा को एक बूंद पानी नहीं देगा पंजाब
पंजाब की राजनीति में एक बड़ा मोड़ उस समय आया जब पंजाब विधानसभा में एक विशेष सत्र के दौरान यह प्रस्ताव पारित किया गया कि हरियाणा को अब पंजाब की सीमा से एक बूंद पानी भी नहीं दिया जाएगा। यह प्रस्ताव पानी के बंटवारे और विशेष रूप से सतलुज-यमुना लिंक (SYL) नहर को लेकर वर्षों से जारी विवाद के बीच सामने आया है।
पानी विवाद की पृष्ठभूमि
सतलुज-यमुना लिंक नहर का मामला भारत के दो राज्यों पंजाब और हरियाणा के बीच लंबे समय से विवाद का विषय बना हुआ है। हरियाणा का दावा है कि उसे 1981 के समझौते के अनुसार पंजाब से जल मिलना चाहिए, जबकि पंजाब की ओर से लगातार यह तर्क दिया जाता रहा है कि राज्य के पास अतिरिक्त जल उपलब्ध नहीं है।
विधानसभा में पारित प्रस्ताव
आज पंजाब विधानसभा में पारित इस प्रस्ताव में स्पष्ट कहा गया कि पंजाब जल संकट से जूझ रहा है और राज्य के किसान और आम जनता पहले ही जल की कमी से प्रभावित हैं। ऐसे में किसी भी अन्य राज्य को जल देना पंजाब की जनता के हितों के खिलाफ होगा।
प्रस्ताव में यह भी कहा गया कि पंजाब की नदियों से हरियाणा को पानी देना किसी भी स्थिति में स्वीकार नहीं किया जाएगा, चाहे वह केंद्र का दबाव हो या सुप्रीम कोर्ट का निर्णय।
राजनीतिक प्रतिक्रिया
हरियाणा के नेताओं ने इस प्रस्ताव की तीव्र आलोचना की है। उन्होंने इसे संघीय ढांचे के खिलाफ बताते हुए केंद्र सरकार से हस्तक्षेप की मांग की है। वहीं पंजाब के मुख्यमंत्री ने कहा कि यह फैसला राज्य की जनता की मांग पर आधारित है और इसमें कोई राजनीति नहीं है, यह सिर्फ और सिर्फ पंजाब के हितों की रक्षा के लिए उठाया गया कदम है।
केंद्र सरकार की भूमिका
इस विवाद को लेकर अब केंद्र सरकार पर दबाव बढ़ गया है। संभावना है कि आने वाले दिनों में जल मंत्रालय या प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक बुलाई जा सकती है ताकि समाधान खोजा जा सके।
जनता में मिला-जुला असर
पंजाब की जनता ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया है और इसे अपनी जल सुरक्षा से जुड़ा हुआ मुद्दा बताया है। दूसरी ओर, हरियाणा में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं और विपक्ष ने इस मुद्दे को लेकर सरकार पर हमला बोलना शुरू कर दिया है।
निष्कर्ष
यह प्रस्ताव न सिर्फ पंजाब-हरियाणा संबंधों में एक नई खटास ला सकता है, बल्कि आने वाले दिनों में केंद्र और सुप्रीम कोर्ट को इस विवाद में हस्तक्षेप करने के लिए विवश भी कर सकता है। दोनों राज्यों के लिए यह आवश्यक है कि वे राजनीतिक हितों से ऊपर उठकर जनता की भलाई के लिए समाधान खोजें।
रिपोर्ट: विशेष संवाददाता, चंडीगढ़