आतंकी हमले के 10 दिन: न जवाब मिला, न इंसाफ
नई दिल्ली। देश को दहला देने वाले आतंकी हमले को दस दिन बीत चुके हैं, लेकिन आज भी न तो एक भी आतंकी मारा गया, न पाकिस्तान पर कोई ठोस कार्रवाई हुई और न ही सरकार के किसी मंत्री या अधिकारी ने इस्तीफा दिया।
हमले में मारे गए 28 निर्दोष नागरिकों की हत्या को लेकर पूरे देश में आक्रोश है। इन लोगों को कथित तौर पर उनका 'धर्म' पूछकर मौत के घाट उतारा गया, लेकिन सरकार इस घाव पर मरहम लगाने की बजाय देश को 'जाति' के बहाने बहलाने की कोशिश कर रही है।
अब तक क्या हुआ?
- हमले के 10 दिन बाद भी कोई आतंकी मारा नहीं गया।
- पाकिस्तान को लेकर केवल बयानबाज़ी, कोई कूटनीतिक या सैन्य कार्रवाई नहीं।
- सरकार में न इस्तीफा, न किसी ने चूक की जिम्मेदारी ली।
- शहीदों के परिवार अब भी इंसाफ की आस में हैं।
सरकार की चुप्पी पर सवाल
इस पूरे घटनाक्रम में सबसे चिंताजनक बात यह है कि सरकार की ओर से न कोई स्पष्ट योजना आई, न ही आतंकी गुटों के खिलाफ कोई जवाबी कार्रवाई हुई। सुरक्षा एजेंसियों की चूक को लेकर भी अब तक कोई जवाबदेही तय नहीं हुई है।
जनता का कहना है कि अगर 28 लोगों की हत्या भी सरकार को नहीं झकझोर सकती, तो यह लोकतंत्र की गंभीर विफलता है। देश के लिए जान गंवाने वाले नागरिकों के लिए यह व्यवहार निंदनीय है।
विपक्ष और नागरिकों का रोष
विपक्षी दलों ने सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कहा है कि यह सरकार 'दुष्प्रचार' और 'धार्मिक ध्रुवीकरण' में लगी है, जबकि देश के नागरिक मारे जा रहे हैं। कई नागरिक संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी केंद्र सरकार से जवाब मांगा है कि देश की सुरक्षा कब प्राथमिकता बनेगी?
शहीदों के परिवारों की व्यथा
मारे गए लोगों के परिवारों में शोक और गुस्सा दोनों व्याप्त हैं। एक शहीद की माँ ने कहा, “हमारे बेटे को सिर्फ इसलिए मारा गया क्योंकि वह एक विशेष धर्म का था। हमें इंसाफ चाहिए, सिर्फ सांत्वना नहीं।”
जाति और धर्म की राजनीति पर चोट
एक ओर देश में जातिगत जनगणना, आरक्षण और धार्मिक पहचान की राजनीति चरम पर है, वहीं दूसरी ओर आम नागरिक आतंकियों के निशाने पर हैं। जनता सवाल पूछ रही है — जब 'धर्म पूछकर हत्या' हो रही है, तब सरकार किस ओर देख रही है?
यह सवाल अब केवल राजनीति का नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा और नैतिक जिम्मेदारी का बन चुका है।
निष्कर्ष
10 दिन हो चुके हैं। न कोई सख्त कार्रवाई, न कोई गिरफ्तारी, न कोई स्पष्ट रणनीति। सरकार ने अब तक चुप्पी साध रखी है, और देश केवल जाति, धर्म और राजनीति के विमर्श में उलझा हुआ है।
अब वक्त आ गया है कि सरकार 'प्रतिक्रिया' नहीं, 'कार्यवाही' करे। ताकि आने वाली पीढ़ियों को यह दिन शर्मिंदगी के रूप में याद न रखना पड़े।
शर्मनाक!