हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में छात्रों का फूटा गुस्सा, प्रशासन के खिलाफ बड़ा आंदोलन
हिसार, 18 जून 2025: हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय (HAU), हिसार में इन दिनों छात्र आक्रोशित हैं और प्रशासन की कथित तानाशाही नीतियों के खिलाफ सड़कों पर उतर आए हैं। विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से छात्रवृत्ति की नई नीति लागू करने, लाठीचार्ज जैसी घटनाओं और छात्र विरोधी निर्णयों के खिलाफ छात्रों ने जोरदार आंदोलन छेड़ दिया है।
शासन और प्रशासन की तानाशाही के खिलाफ छात्रों की हुंकार
छात्रों ने कहा है कि हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय कभी शिक्षा का गढ़ माना जाता था, लेकिन अब यह तानाशाही और लाठी-डंडों का अड्डा बनता जा रहा है। छात्रों का आरोप है कि शांतिपूर्वक विरोध कर रहे विद्यार्थियों पर वाइस-चांसलर, DSW और सिक्योरिटी अफसर की मिलीभगत से बर्बर लाठीचार्ज किया गया, जिसमें कई छात्रों को गंभीर चोटें आईं।
छात्रों की तीन मुख्य मांगें
आंदोलन कर रहे छात्रों ने अपनी तीन प्रमुख मांगें स्पष्ट रूप से प्रशासन के सामने रखी हैं:
- दोषियों की बर्खास्तगी: वाइस-चांसलर, डीन स्टूडेंट्स वेलफेयर (DSW), मुख्य सुरक्षा अधिकारी और लाठीचार्ज में शामिल सभी दोषियों को गिरफ्तार कर विश्वविद्यालय से निष्कासित किया जाए।
- छात्रवृत्ति नीति में बदलाव का विरोध: पहले 70% अंक लाने वाले सभी छात्रों को छात्रवृत्ति दी जाती थी, लेकिन अब नीति में बदलाव कर उसे 75% कर दिया गया है और उसमें भी केवल 30% छात्रों को ही राशि देने का निर्णय लिया गया है। छात्रों की मांग है कि पुरानी व्यवस्था बहाल की जाए और सभी 70% या उससे अधिक अंक लाने वाले विद्यार्थियों को यह राशि दी जाए।
- डिग्री और करियर में कोई अड़चन न हो: आंदोलन में भाग ले रहे छात्रों पर किसी प्रकार का मानसिक दबाव, अनुशासनात्मक कार्रवाई या डिग्री जारी करने में बाधा न डाली जाए।
किसान आंदोलन की तर्ज पर संगठन
यह आंदोलन अब किसान आंदोलन की याद दिलाने लगा है। छात्र कैंपस में ही डटे हुए हैं, उनके लिए खाना, पीना, रहना सब आंदोलन स्थल पर ही व्यवस्था के तहत हो रहा है। छात्र संगठनों ने आंदोलन को चरणबद्ध तरीके से आगे बढ़ाने की रणनीति बना ली है। जगह-जगह जनसभा, पर्चे वितरण और सोशल मीडिया के ज़रिए विश्वविद्यालय की नीतियों की पोल खोली जा रही है।
सवालों के घेरे में विश्वविद्यालय प्रशासन
युवाओं की आवाज़ को दबाने के लिए लाठीचार्ज का सहारा लेना प्रशासन की हताशा को दर्शाता है। छात्रों ने कहा है कि विश्वविद्यालय में शिक्षा की जगह अब डर का माहौल पैदा किया जा रहा है।
एक छात्र नेता ने कहा, “हम पढ़ने आए हैं, पर हमें अपमानित और प्रताड़ित किया जा रहा है। यदि हमारा हक मांगना अपराध है तो हम बार-बार यह अपराध करेंगे।”
जन समर्थन और राजनीतिक चुप्पी
आंदोलन को अब अन्य विश्वविद्यालयों और किसान संगठनों से भी समर्थन मिलने लगा है। वहीं प्रशासन और सरकार की चुप्पी से छात्रों में रोष और अधिक गहराता जा रहा है। आम जनता, शिक्षाविद और पूर्व छात्र भी इस मुद्दे पर खुलकर विश्वविद्यालय प्रशासन की आलोचना कर रहे हैं।
कई सामाजिक संगठनों ने इस आंदोलन को "न्याय की लड़ाई" बताते हुए छात्रों का समर्थन किया है। आंदोलन में लड़कियों की भागीदारी भी उल्लेखनीय है, जो खुलकर प्रशासन के खिलाफ आवाज़ उठा रही हैं।
छात्रों का संकल्प: जीत हमारी होगी
आंदोलनरत छात्रों ने स्पष्ट कर दिया है कि जब तक उनकी सभी मांगें पूरी नहीं होतीं, वे पीछे हटने वाले नहीं हैं। उनका कहना है कि यह आंदोलन अब सिर्फ एक छात्रवृत्ति या एक अधिकारी के खिलाफ नहीं है, बल्कि पूरे तानाशाही ढांचे के खिलाफ क्रांति है।
✊ छात्र एकता - जिंदाबाद ✊
✊ अन्याय के खिलाफ संघर्ष जारी रहेगा ✊