क्या हिसार बार का स्वर दब गया है? HAU छात्रों के पक्ष में खामोशी पर उठ रहे सवाल
हिसार, 16 जून: हिसार बार एसोसिएशन को एक समय अन्याय के विरुद्ध मुखरता और निर्भीकता के प्रतीक के रूप में जाना जाता था। चाहे किसान आंदोलन हो या सामाजिक अन्याय, हिसार की बार ने हमेशा संविधान और न्याय की गरिमा को बनाए रखते हुए अग्रणी भूमिका निभाई थी। लेकिन इन दिनों चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय (HAU) के छात्रों के साथ हो रहे कथित अत्याचारों के मामले में यह संस्था चुप क्यों है, यह सवाल तेजी से उठने लगे हैं।
HAU छात्रों के साथ क्या हो रहा है?
हाल ही में HAU में कुछ छात्रों ने प्रशासन की नीतियों, अनुचित सस्पेंशन, शुल्क वृद्धि और हॉस्टल सुविधाओं की बदहाली के खिलाफ आवाज उठाई थी। इन आवाज़ों को दबाने के लिए कई छात्रों को निष्कासित किया गया, कुछ पर अनुशासनात्मक कार्रवाई हुई और कई छात्र मानसिक रूप से परेशान बताए जा रहे हैं। इन घटनाओं पर मीडिया में सीमित कवरेज हुआ, लेकिन छात्रों के समर्थन में स्थानीय समाज, राजनीतिक संगठन और विशेष रूप से बार एसोसिएशन की चुप्पी कई सवाल खड़े कर रही है।
हिसार बार की ऐतिहासिक भूमिका
हिसार बार ने अतीत में हरियाणा में अनेक जनहित मामलों में आवाज उठाई थी। चाहे वह किसान विरोधी नीतियों का विरोध हो, महिलाओं के खिलाफ हिंसा का मामला हो या पुलिस प्रशासन की ज्यादती — बार हमेशा पीड़ित पक्ष के साथ खड़ी नजर आती थी। वकील समुदाय ने जन आंदोलनों में कानूनी मार्गदर्शन और सक्रिय समर्थन से आमजन में विश्वास पैदा किया था।
इस बार खामोशी क्यों?
जब छात्रों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है, ऐसे समय में बार की चुप्पी हैरान कर रही है। छात्रों, शिक्षकों और पूर्व छात्रों का मानना है कि बार का यह मौन केवल एक साधारण निर्णय नहीं बल्कि संगठन के अंदर "संघीकरण" (राजनीतिक झुकाव) की ओर इशारा करता है। क्या अब बार भी सत्ता के दबाव में काम कर रही है? यह सवाल अब केवल छात्रों का नहीं, बल्कि हर जागरूक नागरिक का बनता जा रहा है।
संघीकरण का आरोप: तटस्थता पर खतरा?
कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं और अधिवक्ताओं का कहना है कि बार का एक वर्ग राजनीतिक प्रभाव में है। उनका मानना है कि वकील संघ का वर्तमान नेतृत्व या तो सत्ता समर्थक है या फिर छात्र मुद्दों को महत्वहीन मानता है। यदि यह सही है, तो यह न केवल छात्रों के लिए, बल्कि पूरे समाज के लिए चिंताजनक संकेत है क्योंकि बार हमेशा न्याय की स्वतंत्र आवाज रही है।
क्या बार को छात्रों का साथ देना चाहिए?
संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत हर नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है और अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और गरिमा का अधिकार। छात्रों की मांगें यदि न्यायोचित हैं, तो उनके पक्ष में बोलना केवल बार का दायित्व ही नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय की रक्षा का भी प्रतीक होना चाहिए। यदि बार संगठन मौन रहता है, तो यह उसकी निष्पक्षता और लोकतंत्र के प्रति प्रतिबद्धता पर प्रश्नचिन्ह है।
न्यायिक चेतना की आवश्यकता
यह वक्त है जब बार संगठनों को अपनी ऐतिहासिक भूमिका को याद करना चाहिए। यदि किसी छात्र को अन्याय का शिकार बनाया जा रहा है, तो उसकी लड़ाई में बार को न केवल समर्थन देना चाहिए, बल्कि आवश्यक कानूनी सहायता भी उपलब्ध करानी चाहिए। चुप्पी, तटस्थता नहीं होती — वह या तो सहमति होती है या कायरता।
निष्कर्ष
हिसार बार एसोसिएशन को अब यह तय करना होगा कि वह अपनी पुरानी गरिमा और परंपरा को बरकरार रखेगी या राजनीतिक चुप्पियों में गुम हो जाएगी। HAU के छात्र इस वक्त न्याय की आशा लिए बार की ओर देख रहे हैं। उम्मीद है कि न्याय और लोकतंत्र की मशाल थामने वाली यह संस्था फिर से जागेगी और अन्याय के खिलाफ आवाज बुलंद करेगी।